दुर्ग जेल में बंदियों को नई रोशनी की राह: एलईडी बल्ब निर्माण से आत्मनिर्भरता की ओर

दुर्ग जेल में बंदियों को नई रोशनी की राह: एलईडी बल्ब निर्माण से आत्मनिर्भरता की ओर

दुर्ग (छत्तीसगढ़): दुर्ग केंद्रीय जेल से एक प्रेरणादायक पहल सामने आई है, जहां बंदियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एलईडी बल्ब निर्माण की ट्रेनिंग दी जा रही है। यह प्रशिक्षण बंदियों को न केवल नया कौशल सिखा रहा है, बल्कि उनके जीवन को भी नई दिशा दे रहा है।

जेल अधीक्षक मनीष संभाकर के मार्गदर्शन में शुरू हुई इस पहल के तहत फिलहाल 10–12 बंदी रोजाना सैकड़ों बल्ब तैयार कर रहे हैं। पहले जिन बंदियों को तकनीकी जानकारी नहीं थी, वे अब कुशलता से बल्ब बना रहे हैं। इससे उन्हें न केवल आत्मविश्वास मिल रहा है, बल्कि भविष्य में स्वरोजगार की राह भी खुल रही है।

जेल प्रशासन का मानना है कि सजा पूरी होने के बाद यह हुनर बंदियों को समाज की मुख्यधारा में सम्मानपूर्वक वापसी का अवसर देगा। यहां तैयार बल्बों को बाजार में बेचा भी जा रहा है, जिससे बंदियों को व्यावसायिक अनुभव भी प्राप्त हो रहा है।

बंदियों ने भी इस पहल की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्हें अब अपने जीवन को लेकर नई उम्मीद दिख रही है। यह प्रशिक्षण उनके लिए सिर्फ तकनीकी ज्ञान नहीं, बल्कि आशा की एक नई रोशनी बनकर आया है।

दुर्ग जेल बंदी एलईडी बल्ब ट्रेनिंग की यह कोशिश न केवल सुधारात्मक दृष्टिकोण को दर्शाती है, बल्कि यह उदाहरण भी प्रस्तुत करती है कि सही मार्गदर्शन और अवसर मिलने पर हर व्यक्ति समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है।

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